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निखिल वागले कुलदीप नैयर स्मृति पत्रकारिता सम्मान से पुरस्कृत

Posted at: Apr 20 2019 10:09PM
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नई दिल्ली। देश और समाज में जब भी डर तथा अहिष्णुता का माहौल होता है तो सच्चाई लिखना एक पत्रकार के लिए चुनौतीपूर्ण काम होता है और जो इस चुनौती को स्वीकार कर लेता है वही एक सधा हुआ पत्रकार बन सकता है। यह बात शनिवार को यहां मराठी भाषा के पत्रकार निखिल वागले को दूसरा कुलदीप नैयर स्मृति पत्रकारिता सम्मान प्रदान करने के लिए आयोजित समारोह में विभिन्न वक्ताओं ने कही। भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता के लिए यह पुरस्कार गांधी शांति प्रतिष्ठान द्वारा 2017 में शुरु किया गया और इसके तहत एक प्रशस्ति पत्र तथा एक लाख रुपए की नकद राशि दी जाती है।  समारोह को संबोधित करते हुए जाने माने पत्रकार आशीष नंदी ने कहा कि आज की परिस्थिति बहुत खराब है और इस माहौल में किसी की आलोचना करना या किसी विषय पर बहस करना कठिन हो गया है। चारों तरफ भय का माहौल है और राजनीति का बाजार अलग तरह के माहौल का है।
 
देश में ऐसा प्रधानमंत्री है जिसने पांच साल के कार्यकाल में एक भी प्रेस कांफ्रेंस नहीं की और देश की जनता को सवाल पूछने का मौका नहीं दिया। गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने कहा कि जब समाज में डर होता है और समाज बंटा होता है तो यह स्थिति देश तथा लोकतंत्र के लिए अच्छी नहीं होती है। उन्होंने कहा कि इससे पहले देश कभी इतना डरा और बंटा हुआ नहीं था। डराता वही है जो खुद डरा हुआ होता है और जो डराता है वह हिंसक होता है। देश इस समय डरी हुई और बिकी हुई पत्रकारिता के दौर से गुजर रहा है और इस माहौल में सच्ची बात सिर्फ वही कर सकता है जो निडर होकर सिद्धांतों की पत्रकारिता करता है। पत्रकार नीरजा चौधरी ने कहा कि मीडिया को निडर होकर अपनी बात कहनी चाहिए और उसे कभी सरकार का भोंपू नहीं बनना चाहिए। समारोह को पत्रकार ओम थानवी ने भी संबोधित किया और कहा कि श्री वागले की निडर पत्रकारिता को वह चार दशक से देख रहे हैं और वह पत्रकारिता में नये मानक तैयार कर रहे हैं।
 
वागले ने कहा कि वह 19 साल की उम्र में मराठी अखबार दिनांक के प्रबंध संपादक बन गये थे। अपने चार दशक की पत्रकारिता में उन्होंने मुंबई में महानगर अखबार शुरू किया और निर्भीक पत्रकारिता करने के कारण शिव सेना, कांग्रेस तथा भाजपा जैसे दलों के निशाने पर आए। उन पर और उनके अखबार पर कई बार हमले हुए लेकिन उन्होंने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। उन्होंने कहा कि टेलीविजन के लिए भी उन्होंने पत्रकारिता की लेकिन एक एंकर के रूप में उनका अनुभव सबसे खराब रहा। उनका कहना था कि एंकर टीपी की स्क्रीन पर आता है लेकिन यदि रिपोर्टर उसे खबर नहीं देगा तो उसकी एंकरिंग का कोई मतलब नहीं रह जाता है इसलिए एंकरिंग करते हुए पत्रकारिता करने को वह अच्छा नहीं मानते हैं।