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न्याय के मंदिर का दरवाजा कभी भी बंद नहीं हो सकता : सुप्रीम कोर्ट

Posted at: Jul 11 2020 4:00PM
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नई दिल्ली। ‘‘न्याय के मंदिर का दरवाजा कभी भी बंद नहीं किया जा सकता।’’ उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी शुक्रवार को उस विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) की सुनवाई के दौरान की जिसमें एक कर्मचारी के कोरोना से संक्रमित होने के कारण राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) में सुनवाई लंबित होने के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया गया था।
 
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की खंडपीठ ने कहा कि न्याय के मंदिर का दरवाजा कभी भी बंद नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने एसएलपी का यह कहते हुए निपटारा कर दिया कि एनसीएलएटी को ऑनलाइन सुनवाई का कोई तरीका ढूंढना चाहिए था। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, ‘‘हम एनसीएलएटी से आग्रह करते हैं कि वह अंतरिम रोक के मामले में न्यायाधिकरण के खुलते है सुनवाई करे।
 
इसके साथ ही न्यायालय ने ‘मैसर्स मराठे हॉस्पिटैलिटी बनाम महेश सुरेखा’ मामले का निपटारा कर दिया। अपीलकर्ता ने एनसीएलटी, मुंबई के आदेश को एनसीएलएटी में चुनौती दी है, लेकिन गत दो जुलाई से वहां न्यायिक कार्य निलंबित कर दिया गया है। जिसके बाद मराठे हॉस्पिटैलिटी ने शीर्ष अदालत का रुख किया था।