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अगर मिट्टी में दीमक न होती तो आज बुरहानपुर में होता ताजमहल

Posted at: Jun 8 2015 5:13PM
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खंडवा। दुनिया के सात अजूबों में शामिल ताजमहल यदि बुरहानपुर की मिट्टी में दीमक नहीं होती तो आगरा के बजाय बुरहानपुर में ताप्ती किनारे होता। मिट्टी में दीमक के खतरे को भांपकर मुगल सम्राट शाहजहां ने यमुना के तट को चुना।  
मुमताज ने बुरहानपुर में ली थी अंतिम सांस
इतिहास में मुगल सम्राट शाहजहां की बेगम मुमताज की मृत्यु 384 साल पहले 1631 की 17 जून को होना दर्ज है। जबकि बुरहानपुरवासी मानते हैं मुमताज ने बुरहानपुर के शाही महल में 7 जून 1631 को चौदहवीं संतान के जन्म के समय अंतिम सांसें ली थीं। बुरहानपुर के आहूखाना में दफनाने के छह महीने बाद मुमताज की कब्र को शाहजहां आगरा ले गए। जहां उनकी याद में ताजमहल बनाया गया।
छह महीने नौ दिन आहूखाना में था शव
मुल्तानी मिट्टी का लेप लगाकर मुमताज के शव को छह महीने नौ दिन तक बुरहानपुर में रखा गया था। ताजमहल के निर्माण में प्रेरणा रही मुमताज की दो अस्थायी कब्र होने को लेकर भी बुरहानपुर सुर्खियों में रहा है। राज्य पुरातत्व विभाग का मानना है कि ताप्ती किनारे जैनाबाद के आहूखाना के पास शव रखा गया था। उधर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) आहूखाने के पास सड़क की तरफ रखना बताते हैं। फिलहाल एएसआई एक जगह दफनाना और दूसरी जगह कफन पहनना बता रहा है। 
नीव में डली लकड़ी इसलिए बदली जगह
पुरातत्व विभाग के बुरहानपुर में सहायक संरक्षक रहे राकेश शेडे के अनुसार बुरहानपुर की मिट्टी ने साथ दिया होता तो शायद ताजमहल ताप्ती किनारे आकार लेता। इसके नींव में लकड़ियों का इस्तेमाल हुआ, जिसमें दीमक लगने का खतरा था। इसी कारण आगरा में यमुना तट को ताजमहल के लिए चुना गया।
37 साल से मना रहे पुण्यतिथि
मुमताज दुनिया छोड़ चुकी हैं, लेकिन उनकी याद बुरहानपुर के लोगों के दिलों में आज भी जिंदा है। पिछले 37 सालों से एक उत्सव के रूप में उनकी पुण्यतिथि मनाई जाती है। आयोजक शहजादा आसिफ ने बताया रविवार को शाही किले में आसिफ प्रोडक्शन के बैनर तले सुबह नौ बजे उनकी याद में फातिहा पढ़ी गई। मुशायरा व कवि सम्मेलन भी हुआ। मध्यकालीन भारत व मुगल इतिहास पर कार्यशाला भी हुई।