Friday, 29 March, 2024
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स्वास्थ्य के लिए बेहद असरदार है पालक

Posted at: Jul 21 2019 1:55AM
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लौह तत्व मानव शरीर के लिए उपयोगी, महत्वपूर्ण, अनिवार्य होता है। लोहे के कारण ही शरीर के रक्त में स्थित रक्ताणुओं में रोग निरोधक क्षमता तथा रक्त में रक्तिमा (लालपन) आती है। लोहे की कमी के कारण ही रक्त में रक्ताणुओं की कमी होकर प्राय: पाण्डु रोग उत्पन्न हो जाता है। लौह तत्व की कमी से जो रक्ताल्पता अथवा रक्त में स्थित रक्तकणों की न्यूनता होती है, उसका तात्कालिक प्रभाव मुख पर विशेषत: ओष्ठ, नासिका, कपोल, कर्ण एवं नेत्र पर पड़ता है, जिससे मुख की रक्तिमा एवं कांति विलुप्त हो जाती है। कालान्तर में संपूर्ण शरीर भी इस विकृति से प्रभावित हुए बिना नहीं रहता।

लोहे की कमी से शक्ति ह्रास, शरीर निस्तेज होना, उत्साहहीनता, स्फूर्ति का अभाव, आलस्य, दुर्बलता, जठराग्नि की मंदता, अरुचि, यकृत आदि परेशानियां होती हैं। पालक की शाक वायुकारक, शीतल, कफ बढ़ाने वाली, मल का भेदन करने वाली, गुरु (भारी) विष्टम्भी (मलावरोध करने वाली) मद, श्वास,पित्त, रक्त विकार एवं ज्वर को दूर करने वाली होती है।
 
आयुर्वेद के अनुसार पालक रुचिकर और शीघ्र पचने वाली
पालक की भाजी रुचिकर और शीघ्र पचने वाली होती है। इसके बीज मृदु, विरेचक एवं शीतल होते हैं। ये कठिनाई से आने वाली श्वास, यकृत की सूजन और पाण्डु रोग की निवृत्ति हेतु उपयोग में लाए जाते हैं। गर्मी का नजला, सीने और फेफड़े की जलन में भी यह लाभप्रद है। यह पित्त की तेजी को शांत करती है, गर्मी की वजह से होने वाले पीलिया और खांसी में यह बहुत लाभदायक है।
 
रासायनिक विश्लेषण- पालक में एक तरह का क्षार पाया जाता है, जो शोरे के समान होता है, इसके अतिरिक्त इसमें मांसल पदार्थ 3.5 प्रतिशत, चर्बी व मांस तत्वरहित पदार्थ 5.5 प्रतिशत पाए जाते हैं। पालक में लोहा काफी मात्रा में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त इसमें पाए जाने वाले तत्वों में कैल्शियम, सोडियम, क्लोरीन, फास्फोरस, खनिज लवण, प्रोटीन, श्वेतसोर आदि मुख्य हैं।
 
पालक से अनेक विकारों में लाभ
1. स्त्रियों के लिए पालक का शाक अत्यंत उपयोगी है। महिलाएं यदि अपने मुख का नैसर्गिक सौंदर्य एवं रक्तिमा (लालिमा) बढ़ाना चाहती हैं, तो उन्हें नियमित रूप से पालक के रस का सेवन करना चाहिए।
2. विभिन्न रोगों में पालक का उपयोग - पालक की पत्तियों को बिना पानी डाले कुचलकर उसका रस निकालकर लगभग 100 मिलीलीटर पीने से पेट खूब साफ हो जाता है। इसे प्रात: 8 बजे पीना चाहिए। अन्य विकारों में भी पालक का रस इसी प्रकार सेवन करना चाहिए।
3. इसका काढ़ा ज्वर प्रधान रोगों में दिया जाता है। गले की जलन दूर करने के लिए इसका रस विशेष उपयोगी है। आंतों के रोग में पालक की तरकारी विशेष हितकर है, क्योंकि इसमें आंत को त्रास देने वाले तत्वों का अभाव है।
4. पालक से अनेक विकारों में लाभ होता है, जैसे घाव देरी से भरना, रतौंधी, श्वेतप्रदर, भूख कम लगना, अजीर्ण, दंतक्षय या पायरिया, नेत्रशूल, क्षय रोग, बालों का गिरना, सिर दर्द, बेरी-बेरी, शक्ति का ह्रास, अतिसार, संग्रहणी, चक्कर आना, घातक रक्तक्षय, पाण्डु रोग, कामला, शरीर का भार घटना, वमन, स्मरण शक्ति का क्षय, दांत के रोग, जिह्वा तथा अन्नप्रणालीय शोथ आदि।
5. छिलके वाली मूंग की दाल को पकाकर, उसमें पालक के पत्ते मिलाकर, उसका संस्कारित सूप रोगी के लिए हितकारी है। स्वस्थ व्यक्ति भी इसका नियमित सेवन कर सकते हैं।