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इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला, उम्रकैद की सजा पाये कैदी की रिहाई का आदेश

Posted at: Jul 11 2020 10:12PM
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प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने नाबालिग बालक का अपहरण करने और फिरौती मांगने के जुर्म में उम्र कैद की सजा पाए अभियुक्त को रिहा करने के आदेश दिये हैं। न्यायालय ने उम्रैकद की सजा पाये गुड्डू उर्फ नितिन सिंह की सजा को कम करके सात वर्ष की सजा में तब्दील कर दिया तथा जेल में इससे अधिक अवधि बिता चुके होने के कारण अभियुक्त को रिहा करने का आदेश दिया है। अभियुक्त की आपराधिक अपील पर सुनवाई करते हुए यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति गोंिवद माथुर और न्यायमूर्ति एसडी सिंह की खंडपीठ ने दिया है ।
 
मामले के अनुसार दो अप्रैल 2005 को फतेहपुर थाने में सुरेंद्र कुमार साहू ने अपने नौ वर्षीय भतीजे अमन की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज  कराई थी। अमन का अपहरण करने का आरोप नितिन के अलावा लाला उŸर्फ दिग्विजय सिंह और मुन्ना सिंह पर भी लगा था। पुलिस ने  9 जून 2005 को तीनों अभियुक्तों को प्रयागराज धूमनगंज थाना क्षेत्र से गिरफ्तार किया और  अमन को मुक्त करा लिया। तीनों अभियुक्तों ने अमन को देवप्रयागम कॉलोनी के पूर्वी क्षेत्र स्थित मिलिट्री फॉर्म के जंगलों में छुपा कर रखा था।
 
अभियोजन के मुताबिक फिरौती मांगने के लिए  अमन के पिता को 4 चिट्टियां लिखी गई तथा ग्राम प्रधान नरपत सिंह के फोन पर कॉल करके भी फिरौती मांगी गई थी । इन तथ्यों के आधार पर फास्ट ट्रेक कोर्ट ने 1 दिसंबर 2006 को तीनों अभियुक्तों को उम्रकैद और 10000  रूपया जुर्माने की सजा सुनाई।          अपील में बचाव पक्ष की ओर से कहा गया कि उनको झूठा फंसाया गया है दोनों परिवारों के बीच पहले से कुछ बातों को लेकर विवाद था। 
 
बालक के पिता राजेंद्र साहू ग्राम प्रधान नरपत सिंह का पक्ष लेते थे। यह भी कहा गया कि अभियुक्त गण के परिवार के पास 100 बीघा जमीन है जबकि राजेंद्र साहू के पास 4 बीघा जमीन है। ऐसे में फिरौती के लिए अपहरण करने की बात सही नहीं है। अभियुक्तों के पास से जो रकम बरामद की गई है उन्होंने अपने कोऑपरेटिव बैंक के खाते से गिरफ्तार करने वाली पुलिस टीम को रिश्वत देने के लिए निकाली थी । इसी रकम को उन्होंने फिरौती की रकम की बरामदगी के रूप में दिखा दिया।
 
अभियोजन का दावा था पाँच लाख की फिरौती मांगी गई थी। जिसमें से 70000 रूपये अभियुक्तों को दिए गए थे। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में नाकाम रहा कि किसी प्रकार से जान से मारने या गंभीर चोट पहुंचाने की धमकी दी गई तथा फिरौती के लिए भेजी गई चिट्ठीओं को भी साबित नहीं कराया गया । इस प्रकार फिरौती के  लिए अपहरण में इस महत्वपूर्ण तथ्य को अभियोजन द्वारा साबित नहीं किया जा सका है।
 
अदालत ने फिरौती के लिए अपहरण की धारा 364 ए में सुनाई गई उम्र कैद की सजा कम करके धारा 365 आईपीसी के तहत 7 वर्ष की सजा सुनाई है। अभियुक्त पिछले 14 वर्षों से जेल में बंद है इसलिए उसे तत्काल रिहा करने का आदेश दिया गया । इसी प्रकार से कोर्ट ने अभियुक्त मुन्ना सिंह पर आरोप साबित न होने के कारण उसे बरी कर दिया।