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अरुण जेटली ने बताई महाभियोग प्रस्ताव रद्द करने की वजह

Posted at: Apr 25 2018 11:04AM
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नई दिल्ली। महाभियोग प्रस्ताव को लेकर जारी विवाद के बीच वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने फेसबुक पर अपनी एक पोस्ट में लिखा कि उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायधीश के खिलाफ कांग्रेस के नेतृत्व में कुछ विपक्षी दलों के सदस्यों द्वारा लाए गए महाभियोग प्रस्ताव का आधार अपुष्ट था। उन्होंने कहा कि इसे मुख्य न्यायधीश और शीर्ष न्यायालय के न्यायधीशों को डराने के उद्देश्य से लाया गया था। 
प्रस्ताव में ठोस सबूत की कमी 
राज्य सभा के सभापति एम. वैंकया नायडू ने मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा पर महाभियोग चलाने के नोटिस को सोमवार को खारिज कर दिया। वित्त मंत्री ने अपने पोस्ट में लिखा कि महाभियोग का कोई प्रस्ताव ऐसी बहुत असाधारण परिस्थितियों में ही लाया जाना चाहिये जहां किसी न्यायधीश ने अपने सेवाकाल में कोई भारी कसूकर दिया हो। ऐसे मामले में आरोप साबित करने के लिए ठोस सबूत होने चाहिए। उन्होंने कहा कि कानाफूसी और अफवाह को सबूत का दर्जा नहीं दिया जा सकता। 
न्यायाधीशों को विवाद में घसीटना गलत
जेटली ने लिखा कि यह महाभियोग प्रस्ताव अपुष्ट बातों के आधार पर पेश किया गया था और इसका परोक्ष उद्येश्य भारत के मुख्य न्यायाधीश और सबसे बड़ी अदालत के अन्य जजों में डर पैदा करना था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी यदि किसी मामले में हित देखती हो और न्यायालय की राय उसके माफिक नहीं हो तो वह संबंधित न्यायाधीशों को विवाद में घसीटने और उन्हें विवादास्पद बनाने के काम में माहिर है। पोस्ट में लिखा कि किसी भी राजनीतिक विश्लेषक के लिये यह स्पष्ट था कि संसद में इस महाभियोग प्रस्ताव को दो - तिहाई बहुमत नहीं मिलेगा। कांग्रेस की तरफ से इस तरह के संकेत मिलने कि वह राज्यसभा चेयरमैन के आदेश को अब उच्चतम न्यायालय में चुनौती देगी। 
संसद की प्रक्रिया को अदालत में नहीं दी जा सकती चुनौती 
जेटली ने कहा कि संसद अपने कामकाज के मामले में सर्वोच्च निकाय है, संसद की प्रक्रिया को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि इस समय बड़ी संख्या में जाने माने वकील संसद के सदस्य हैं और ज्यादातर राजनीतिक दलों ने उनमें से किसी न किसी को नामित किया है क्योंकि अदालत और संसद की चचार्ओं में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है। लेकिन इसके साथ इसमें एक पहलू यह भी जुड़ गया है कि वकालत करने वाले सांसदों द्वारा अदालत के अंदर के झगड़ों को संसदीय प्रक्रिया में घसीटने की प्रवृत्ति बढ़ी है। उन्होंने कहा कि भारत के मुख्य न्यायधीश के खिलाफ गलत सोच के साथ महाभियोग का प्रस्ताव लाना इसी प्रवृति का एक उदाहरण है।