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18 मार्च 2018: गुड़ी पड़वा पर होगा स्वयंसिद्ध मुहूर्त: जानिए पर्व का महत्व

Posted at: Mar 17 2018 8:48PM
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18 मार्च को वर्ष प्रतिपदा के अवसर पर स्वयंसिद्ध मुहूर्त रहेगा। सनातन धर्म में मुहूर्त का विशेष महत्व होता है। किसी भी शुभकार्य या शुभ-कर्म को करने से पूर्व शुभ मुहूर्त का निर्धारण किया जाता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा, वर्ष प्रतिपदा, उगादि (युगादि) कहा जाता है। इस दिन हिन्दू नववर्ष का आरंभ होता है। 'गुड़ी' का अर्थ होता है -'विजय पताका' ‘युग’ और ‘आदि’ शब्दों की संधि से बना है ‘युगादि"। गुड़ी पड़वा को संस्कृत में चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के नाम से जानते हैं, यह चैत्र महीने के पहले दिन मनाया जाता है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार गुड़ी पड़वा यानि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को हिन्दू नववर्ष का शुभारंभ माना जाता है।

शब्द पादावा पड़वा या पाडोव संस्कृत शब्द पद्द्ववा/पाद्ड्वो से बना है जिसका अर्थ है चंद्रमा के उज्ज्वल चरण का पहला दिन। इसे संस्कृत में प्रतिपदा कहा जाता है। दक्षिण भारत में चंद्रमा के उज्ज्वल चरण का जो पहला दिन होता है उसे पाद्य कहते हैं। भारत के विभिन्न भागों में इस पर्व को भिन्न-भिन्न नामों से मनाया जाता है। गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय इसे ‘संवत्सर पड़वो’ नाम से मनाता है। कर्नाटक में यह पर्व ‘युगाड़ी’ नाम से जाना जाता है। आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना में ‘गुड़ी पड़वा’ को ‘उगाड़ी’ नाम से मनाते हैं। कश्मीरी हिन्दू इस दिन को ‘नवरेह’ के तौर पर मनाते हैं।

मणिपुर में यह दिन ‘सजिबु नोंगमा पानबा’ या ‘मेइतेई चेइराओबा’ कहलाता है। इस दिन चैत्र नवरात्रि भी आरंभ होती है। सामान्य तौर पर इस दिन हिन्दू परिवारों में गुड़ी का पूजन किया जाता है और इस दिन लोग घर के द्वार पर गुड़ी लगाते हैं और घर के दरवाजों पर आम के पत्तों से बना बंदनवार सजाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह बंदनवार घर में सुख, समृद्धि और खुशियां लाता है। इस पर्व के मनाने के पीछे कई लोगों की अलग- अलग राय है और इस त्यौहार का विशेष महत्व भी है। इससे कई कहानियां भी जुड़ी हैं जिसमें से एक है 'निर्माण का सिद्धांत'। इस दिन को लंका के राजा रावण को पराजित करने के बाद भगवान राम के अयोध्या लौटने का दिन भी कहा जाता है।