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मथुरा में वसंत पंचमी पर राधा श्यामसुंदर मंदिर बनता है गवाह

Posted at: Jan 28 2020 1:54PM
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मथुरा। उत्तर प्रदेश में मथुरा के वृन्दावन के सप्त देवालयों में राधा श्यामसुन्दर मंदिर ही एक मात्र ऐसा मंदिर है जो वसंत पंचमी पर ’’राधिका गोरी से, बिरज की छोरी से मैया करा दे मेरो व्याह’’ का गवाह बन जाता है। इस बार यह उत्सव 30 जनवरी को होगा। ब्रज के अलावा किसी अन्य मंदिर में ऐसा संयोग नही बनता है कि जिस दिन मंदिर के राधाश्यामसुन्दर के श्रीविगृह का प्राकट्य हो ,समय के अंतराल पर उसी दिन राधाश्यामसुन्दर का विवाह हो तथा समय के अंतराल में उसी दिन सिंहासनारूढ़ महोत्सव का आयोजन हो जाए।
पर व्रज तो श्यामाश्यामक हृदय है तभी तो जहां देश के अन्य भागों में श्रीकृष्ण कोटि कोटि लोगों के मात्र आराध्यदेव हैं वहीं ब्रजवासियों के वे सखा, लला आदि के रूप में हैं इसलिए ब्रज में श्यामाश्याम के ऐसे उत्सव भी होते हैं जिनका पौराणिक दृष्टांत भले न मिले किंतु जो ब्रज की अमूल्य निधि बन चुके हैं। इन्ही में राधाश्यामसुन्दर मंदिर वृन्दावन के उक्त तीन उत्सव हैं।
राधाश्यामसुन्दर मंदिर वृन्दावन के सेवायत आचार्य कृष्ण गोपालानन्द देव गोस्वामी प्रभुपाद ने कहा कि राधारानी के हृदय में नित्य विराजमान श्यामसुन्दर ने सन 1578 की वसंत पंचमी को   राधारानी के हृदय कमल से प्रकट होकर  श्यामानन्द प्रभु की प्रेमसेवा को स्वीकार किया था।  सन 1580  को स्वयं राधारानी भरतपुर के तत्कालीन  महाराजा के रत्न भंडार में  स्वयं प्रकट होकर उसी वर्ष वसंत पंचमी के दिन श्यामसुन्दर जी के साथ शुभ विवाह बंधन में बंध गई थी।
इस दिन मंदिर का पर्यावरण न केवल वासंती बन जाता है बल्कि मुख्य विग्रह के श्रंगार से लेकर प्रसाद तक वासंती रंग का ही होता है। इसकी पृष्ठभूमि में श्यामाश्याम की रासलीला की एक घटना है। मंदिर के सेवायत गोस्वामी ने बताया कि श्रीकृष्ण को अधिकतम आनन्द देने के लिए एक रात राधारानी ने निधिवन में तीब्र गति से जब नृत्य किया तो वे नृत्यलीला में इतनी निमग्र हुई कि उनके बाएं चरण से उनका इन्द्रनीलमणियों से जडित ‘मंजुघोष’ नामक नूपुर टूटकर रासस्थली में गिर पड़ा पर उन्हें इसका अहसास भी नही हुआ।
30 जनवरी को वसंत पंचमी पर ठाकुर जी की सवारी प्रात: 9 बजे वृन्दावन नगर संकीर्तन पर निकलेगी जिसमें सप्त देवालयों के गोस्वामीगण, प्रभुपादगण, महन्तगण, भक्ति वेदांत स्वामी के भक्तगण समेत विभिन्न धार्मिक आचार्य  भाग लेंगे। शाम 4 बजे प्राकट्य उत्सव होगा जिसके तहत  फूल बंगला एवं अनूठा छप्पन भोग  के साथ साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। इस दिन मंदिर प्रांगण आध्यात्मिक पर्यावरण से परिपूर्ण हो जाता है और जनश्रुति के अनुसार इस दिन युगल विग्रह के दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति होती है इसीलिए तीर्थयात्री मंदिर की ओर चुम्बक की ओर खिचे चले आते हैं।